लंगासू, चमोली ( रिपोर्ट:-श्रीनिवास पंत ) – एक कहावत आपने जरुर सुनी होगी , “गुरु बिन जीवन का सार पूरा नहीं होता”. ऐसे ही एक शिक्षिका से आज आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, जिन्होंने शिक्षण के साथ समाज में अहम योगदान के लिए अलग ही छाप छोड़ी. उनका स्कूल से और क्षेत्र से ऐसा नाता बन गया, जिससे दूर होना मुश्किल हो गया. खासकर जब उनकी विदाई हुई तो मानों छात्रों और ग्रामीणों को लगा जैसे कोई अपना दूर जा रहा हो. यही वजह है कि जब उनकी विदाई हुई तो न केवल छात्र बल्कि, पूरा क्षेत्र रो पड़ा
प्राथमिक विद्यालय लंगासू चमोली के लिए हर्ष का विषय और भावुक क्षण भी है, इस विद्यालय परिवार को संवारने में और एक नए सिरे से बनाने में शायद ही कोई शशि कंडवाल जैसी शिक्षिका हो, जिन्होंने तन,मन, धन और विद्या से क्षेत्र में पढ़ने वाले छोटे-छोटे नोनीहालों के जीवन सँवारने का काम किया, शशि कंडवाल का चयन वर्तमान में राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय गौचर में हुआ है और उन्हें प्राथमिक विद्यालय लंगासू के अभिभावकों द्वारा बुधवार को विदाई दी गई…..
शशि कंडवाल राजकीय प्राथमिक विद्यालय लंगासू कर्णप्रयाग चमोली में 29 जुलाई 2017 को प्रधानाध्यापिका पद पर पदोन्नति के पश्चात आई थी, उस वक्त विद्यालय की छात्र संख्या 12 थी, तब विद्यालय की शैक्षिक और भौतिक स्थिति बहुत ही दयनीय थी, लेकिन शशि कंडवाल ने संकल्प लिया था कि प्राथमिक विद्यालय लंगासू को आदर्श मंदिर बनाना है। जिसके बाद बाद शशि कंडवाल ने समाज को विद्यालय के प्रति जागरूक किया । शशि कंडवाल ने राजकीय प्राथमिक विद्यालय लंगासू में 7 वर्ष 8 माह काम कियाऔर वर्तमान में विद्यालय की छात्र संख्या 31 है, जिसके बाद शशि कंडवाल की मेहनत रंग लाने लगी और राजकीय प्राथमिक विद्यालय लंगासू के बच्चे खेल-सुलेख प्रतियोगिता में जिले से लेकर प्रदेश तक प्रतिभाग करने लगे, वही विद्यालय को राज्य स्तर पर बेस्ट लाइब्रेरी का पुरस्कार प्राप्त हुआ है
वही अब क्षेत्र के लोग उनके जाने से नाखुश जरुर है लेकिन उन्होंने शशि कंडवाल के उज्जवल भविष्य की कामना की है क्षेत्र के लोगो का कहना है की जो प्यार बच्चों को शशि कंडवाल द्वारा दिया गया शायद ही और कोई दे पाएगा, विद्यालय की एक नई दिशा और दशा पहचान बनाने में शशि कंडवाल के योगदान को शायद ही कोई भूल पाए, शशि कंडवाल ने समय को कभी भी अपने पर हावी नहीं होने दिया बल्कि समय को भी विद्यार्थियों के प्रति मात दे दी, क्षेत्र में जितने भी विद्यालय हैं वहां समयानुसार सभी की छुट्टी हो जाती थी पर राजकीय प्राथमिक विद्यालय लंगासू में अभिभावकों को इंतजार करना पड़ता था,
उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है, कई गांव ऐसे हैं, जो दुर्गम और सुदूर क्षेत्र में स्थित हैं, ऐसे में ज्यादातर शिक्षक इन इलाकों में ड्यूटी देने से कतराते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी शिक्षक हैं, जिन्होंने पहाड़ों के दूरस्थ गांवों को अपनी कर्मभूमि माना और बच्चों को पढ़ा कर उन्हें आगे की राह दिखाई , इस दौरान उनका ग्रामीणों के साथ अलग ही नाता जुड़ा. शशि कंडवाल के तबादले से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है कि शशि कंडवाल अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन कर रही थी, वो न सिर्फ एक अच्छे शिक्षिका की भूमिका निभा रही थी बल्कि, समाज के प्रति अपने दायित्वों का सफल निर्वहन भी कर रही थी. जो आज के नौजवानों के लिए प्रेरणास्रोत भी हैं. सूबे में सरकारी स्कूलों की स्थिति ज्यादा ठीक नहीं है. शिक्षक पहाड़ नहीं चढ़ना चाहते हैं, लेकिन शशि कंडवाल ने पहाड़ के बच्चों के भविष्य को संवारने का काम किया…….